कैसे सोचा होगा तुम कदम्ब का वृक्ष और मैं हूँ कोमल बेल जीवन पर्यन्त झूलती रहूँगी तुम्हारे चारो ओर तुम शांत अपनी बाँहें फैलाये इस उतावली को अपने देह से सटने दोगे और मैं चिपक के मजबूती से अपने खड़े होने का भ्रम पालती रहूँगी सर्वमान्य सत्य हो जाता है मन अवकाश लहरों के समीप तुम्हारे बालुका की प्रतिमा के समक्ष सिर झुकाए कठोर व्रत और तप के बाद तुम्हारा अर्धासन प्राप्त करुँगी हृदय में स्थान बना कर स्थूल रत्न जड़ित गहनों से अपने को सजा कर पारण से पूर्व सोने से सापिन दूध पीने से नागिन और न जाने क्या क्या हो जाउँगी कई वर्षोें तक आँखे मूँद कर भूखी प्यासी पढ़ती रही उस पोथी को जो मेरे लिए लिखी ही नहीं गई थी मैं जयकारा लगा आरती दिखा पूजा करती रही तुम्हारे जड़ेां की लपेटती रही लाल पीले धागे तुम्हारे तने से लिपटती रही तुम्हारे वक्ष से समझते रहे सब तुमको कदम का वृक्ष और मुझको कोमल बेल - पल्लवी शर्मा |
उसने जानबूझ कर
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(from "Heart's Desire " edited by Elizabeth Benson
Can I please borrow your tongue? I need to talk to you Listen to me when I speak my mind And show some compassion as I translate my life Ring around the roses and other nursery rhymes I am learning to deliver your plastic smile Like a scare crow standing in midst of corn fields I stand alone to watch birds play and sing Can I please borrow your tongue? I need to talk to you Your tongue fears my teeth and saliva laden mouth The digested harmful waste Bombs and fatal dreams Stand by my side like a scare crow in midst of a corn field Speak to me as I speak to you Pallavi Sharma , January 12, 2007 |
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