pallavi sharma
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Meri soch, meri bhasha! few of my poems for you. pub. in Hindi Jagat

9/5/2014

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Picture

कैसे सोचा होगा 
तुम कदम्ब का वृक्ष
और मैं हूँ कोमल बेल 
जीवन पर्यन्त 
झूलती रहूँगी तुम्हारे चारो ओर
तुम शांत 
अपनी बाँहें फैलाये ​
इस उतावली को 
अपने देह से सटने दोगे
और मैं चिपक के 
मजबूती से 
अपने खड़े होने का 
भ्रम पालती रहूँगी
​


सर्वमान्य सत्य हो जाता है
मन अवकाश 
लहरों के समीप 
तुम्हारे बालुका की प्रतिमा के समक्ष
सिर झुकाए 
कठोर व्रत और तप के बाद 
तुम्हारा अर्धासन प्राप्त करुँगी
हृदय में स्थान बना कर
स्थूल रत्न जड़ित गहनों से 
अपने को सजा कर 
पारण से पूर्व
सोने से सापिन 
दूध पीने से नागिन 
और न जाने क्या क्या हो जाउँगी
कई वर्षोें तक 
आँखे मूँद कर 
भूखी प्यासी 
पढ़ती रही उस पोथी को
जो मेरे लिए लिखी ही नहीं गई थी



मैं जयकारा लगा 
आरती दिखा 
पूजा करती रही 
तुम्हारे जड़ेां की
लपेटती रही 
लाल पीले धागे
तुम्हारे तने से 
लिपटती रही 
तुम्हारे वक्ष से
समझते रहे सब
तुमको कदम का वृक्ष
और मुझको कोमल बेल

- पल्लवी शर्मा 


​

उसने जानबूझ कर 
अपनी कविता के तुक का 
ह्नन किया
ताकि वो गीत ना बन पाए
ना गा सके उसे कोई
सूकून से



सांझ ढले

धुन है गाने की गुनगुनाने की 
आवाज है, शब्द है, पर  समय हो चला है जाने का
दुपहरिया  से परे सांझ ढले 
मैया दिखाती है दीया  तुलसी थामरे  को 

बुढ़िया  दादी दोनों समय नहाती कातिक के महीने में 
बेला-चमेली और उड़हुल के लाल फूल से सेवा करती 
आँगन में विराजमान देवी देवता का
फिर…. बैठ उंघती 
धूप तापती, … और बाँट जोहती सांझ होने का 

रंगीन चश्मे, लाल कमीज और काली ताबीज पहने
नैहर से आया भईया का बेटा क्या-क्या खायेगा 
उसे क्या क्या दिया जायेगा 
इसका बैठ हिसाब लगाती
सपनो की शिराओं और धमनियों को चूस चूस कर पीती और खोखती

धुन है गाने की गुनगुनाने की 
आवाज है, शब्द है, पर  समय हो चला है जाने का



-- पल्लवी शर्मा

सजावटी सामान 

जी लेती है वह थोड़ा पानी पी पी कर 

लाल सुर्ख होठ, नकली मुस्कान 

दवा के असर से 

धुंधलका है आँखों के सामने 

कैसे देख पाती 

स्याह सफ़ेद सच्चाई को 

जानवर के नाखुनो से भी सख्त 

लम्बे प्लास्टिकी रंगीन नाखूनों से 

रिझाती अपने आप को 

शर्मा जाती अपने खालीपन पर

सिसकती जाती 

थोड़ा पानी पी पी कर

साँझ सवेरे नुकीली ऐड़ी वाली 

सैन्डल  पर सवार 

घुमती दिन दिन भर 

जीवन की तलाश में 

हड्डियों के जाते दम 

और रोगग्रस्त शारीर को 

रात में दफ़न कर देती बिस्तर में

अविकसित, अर्धविकसित 

अनकही, अनचाही 

बन बन के बिगड़ने वाले 

कागज का रेखांकन है ये

रंग के बाद 

एक घर, एक दिवार 

एक देखनेवाले की तलाश 

सजावटी सामान की तरह 

बाज़ार में बिकने को तैयार है ये

जी लेती है वो थोड़ा पानी पी पी के 

लाल सुर्ख होठ नकली मुस्कान


-- पल्लवी शर्मा


मानचित्र 

नगें उघारे विचारों को तोप कर 

टांग दिया है दीवारों पर 

मानचित्र की भांति 

जिसमे रास्तों और सरहदों का बस लेखा जोखा है 

कुछ बीज जो तुमने बोये थे शान्ति के 

उस फसल का इसमें कोई हिसाब नहीं 

मील के पत्थर की तरह गढ़ी स्मारकों के अलावा 

उन गुमटियों और चौराहों का कोई विवरण नहीं 

जहाँ हमलोगों ने झंडा लहराया था 

या सुबह-सुबह रस्ते पे गिरे 

पलाश के लाल फूलों से गुलदस्ता बनाया था

इसमें दर्रों और खाड़ियों  की प्रष्ठभूमि तो है 

पर दिलों की खाई,  एड़ियों की बिवाइ, और  

अंडकोष में पनपते मांस के गोले से पीड़ित 

उस औरत की कोई चर्चा नहीं

जो मरते-मरते बची थी 

इस सपाट तिरंगे चित्र में 

पिघलते खंड-खंड से बनी धरती के 

अंतरिम आकर और प्रकार का कोई अस्तित्व नहीं 

-- पल्लवी शर्मा


6 Comments

Unedited  6  

1/4/2013

4 Comments

 
(from "Heart's Desire " edited by Elizabeth Benson 


Can I please borrow your tongue?
I need to talk to you 
Listen to me when I speak my mind
And show some compassion as I translate my life

Ring around the roses and other nursery rhymes
I am learning to deliver your plastic smile 
Like a scare crow standing in midst of corn fields 
I stand alone to watch birds play and sing

Can I please borrow your tongue?
I need to talk to you 
Your tongue fears my teeth and saliva laden mouth
The digested harmful waste 
Bombs and fatal dreams 

Stand by my side like a scare crow in midst of a corn field 
Speak to me as I speak to you


Pallavi Sharma , January 12, 2007



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